पत्थर की मूरतो में समझा कि तू खुदा है, खाके वतन का अपना हर जर्रा देवता है।
यही है सच्ची देशभक्ति। अपने देश के कण-कण को देवता समझकर उसके प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करना ही हमारा कर्तव्य है। अपने देश की सभ्यता ,संस्कृति ,साहित्य नागरिक और चिंतन दर्शन के प्रति अटूट विश्वास रखने का नाम ही देश भक्ति है। भक्ति का स्वरूप बदलता रहता है। जब देश पर दूसरे की नजर गङी हो तब उसकी आंखें निकाल लेना ही देशभक्ति है। परतंत्रता की स्थिति में अपने तन -मन और धन को देश के नाम पर उत्सर्ग कर देना चाहिए। हमें भूलना नहीं चाहिए कि स्वाधीनता के संग्राम में कितनी बहनों ने अपनी राखी, कितनी माताओं ने अपने दूध और कितनी ललनओ ने अपने सुहाग को उत्सर्ग कर दिया था। जलियाँवाला बाग तो एक उदाहरण है। सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह से लेकर महात्मा गांधी और लौहपुरुष बल्लभभाई पटेल आदि की कीर्तियो से आज भी रस्मे निकल रही है।
किसी भी स्वाधीन देश के नागरिकों के लिए सबसे बड़ी देशभक्ति यह है कि वह देश में शिक्षा, जागृति, प्रेम ,और भाईचारे के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर दे,आज हमारा देश अनेक तरह के विवाद -विवाद में फंसा है। क्षेत्रीयता, संप्रदायिकता और जातीयता का बोलबाला है। हम नाम और नारे के पीछे भाग रहे हैं। फूट और बैर की खेती हो रही है। कभी आसाम अशांत होता है, तो कभी कश्मीर की कलियाँ चिंगारी बनती हैं। हम इन समस्याओं पर गौर से विचार करें तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि कोई पङोस के देश ही हमारे ऊपर जाल फेक रहा है हम मिल्लत की तलवार से दुश्मन के जाल को काट सकते हैं।
देश का एक- एक व्यक्ति चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय से जुड़ा हो, का विकास देखना, उसे सुखी बनाना ही सच्ची देशभक्ति है। हम अपने आसपास के लोगों को जोड़कर छोटी -छोटी टोली बनाकर शिक्षा का दीप जलाएं ,जागृति का अलख जगाये, मिल्लत को मजबूत करें तथा एकजुट होकर घर में छिपे शत्रुओ का संहार करे - यह देशभक्ति है।
इस तरह, हम कह सकते हैं कि देश -भक्ति मन की उच्च भावना है । अपने देश के चतुर्दिक विकास के लिए शिक्षा , एकता, और प्रेम को बढ़ावा देना तथा दूसरे देश की हर सियासी चाल को खत्म करना ही देशभक्ति है। आपसी प्रेम और राष्ट्रीयता का भाव भरना इसके चरण हैं।
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